पिता की डायरी
पिता रोज अपने होनें की डायरी लिखते थे
डायरी में पिता के साथ
होती थी गांव की सुदी बदी
पिता की डायरी पिता के साथ
गांव की इबारत थी
जिसमें नदी ,पहाड़, खेत
बाग,बन
सब होते थे
होते थे गाय, बेंल भैस ,लेरु, पडेरु ,
डायरी में दर्ज होते थे
सोवर -शुदक ,जमा और कर्ज
डायरी में लिखा था दशहरे की छुटटी के बाद
आज स्कूल खुले
जगदीश ,किरन , नारायण स्कूल पढ़नें गये
रात में भूरी भैंस पडिया बियायी
सुबह भौनिया दीक्षित नहीं रहे
दोपहर में खेली त्रिवेदी और चुन्नी लाल के बीच
फौजदारी हुई चुन्नी लाल घायल हुये
बिल्लर तिवारी के पोता हुआ
आज दिन भर गाते में जुताई हुई
आधा खेत अभी बाकी रहा
गैदी केवट छावनी हार की बाकी
पैंसठ रुपये दे गया
भोला तिवारी के यहां से
दो मन गेहूं सवाई पर लाया
बुल्ला अहीर आज काम पर नहीं आया ,
पिता की डायरी के पन्नें
पिता के जीवन की सलवटें थी
जिन्हें मैं अक्सर अकेले में
पढ़ा और गिना करता था
जो पिता के चेहरे में मुझे
कभी नहीं दिखाई देती थी ,
पिता कीडायरी पिता की आत्मकथा नहीं थी
वह कथा थी उनकी
जिनके जीवन की कोई कथा नही होती
जिनके जीनें मरनें का
कोई लेखा नहीं होता दुनियां में
उनकां लेखा थी पिता की डायरी ,
हर साल बदलती पिता की डायरी के
खाली रह गये पन्नों को हम
हसरत से देखते थे
क्योंकि हमें पढ़ाई के लिए अक्सर
खाली पन्नों का टोटा रहता था
क्या समय था वह जब
शब्द कागज में उतरनें के लिए व्याकुल रहते थे
तो कागज नहीं थे इतने
आज जब कागज की ही माया है
तो शब्द नहीं हैं
कागज में उतरनें को तैयार .
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