सोमवार, 27 अप्रैल 2020

मेरे पढ़े लिखे में

मेरे पढ़े लिखे में                   
मैं लिखनें में लगा रहता हूं
पत्नी आकर धीरे से
चाय रख जाती है,

मैं पढ़ने में लगा रहता हूं
पत्नी आती है.
स्टूल खिसका कर धीरे से
रख देती है नाश्ते की प्लेट ,

मेरे नाश्ता खत्म करते करते
पत्नी आती है लेकर
पानी का गिलास
धीरे से कहती है
खानें में क्या लेंगें ,

मैं कहता हूं
जो मन कहे बना लेना
लेकिन थेडा़ सा खाउंगा
पत्नी बिना कुछ कहे चली जाती है ,

मैं लिखे पन्नों को उठाता हूं
लिखे को पढ़ता हूं
पढे़ को लिखता हूं
मेरे पढे़ लिखे में
कहीं नहीं दिखती
आती जाती
नाश्ता पानी लाती पत्नी .





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