सोमवार, 6 अप्रैल 2020

दिहाड़ी मजदूर


 हम दिहाडी मजदूर हैं
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हुजूर आपने इकदम से
बन्द कर दी थी
बसें और ट्रेनें सो
हम करते क्या
हम तो बेघर हैं आपकी दिल्ली में
जब घर ही नहीं हैं
तब हम कैसे रहते घर में,
हम दिहाडी मजदूर हैं हुजूर
दिहाडी बन्द
विहारी विहार में
विहारी कहाँ रुकता है
विहार छोड़ कर
वह चल देता है
दुबई अरब अमीरात से
पलक झपकते रातो रात और
विहार में दिखाई देता है ,
अब तो चल ही दिये हैं हुजूर
पहुँच ही जायएगें मोतिहारी
आरा गया मुजफ्फरपुर बेगुसराय
पटना और हजारीबाग
आपके लिये दूर होगें हुजूर
हमारे लिये तो घर है
घर कितना भी दूर हो
वह घर होता है
आदमी पहुच जाता है घर ,
हुजूर हमारे सर जो बोझा है
वह उन ईट के गुम्मो से बहुत कम है
जिन्हे लेकर हम आपके घर बनाने के लिये
कयी मंजिल चढ़ते चले जाते हैं ,
हुजूर यह मत सोचिये कि
हमारे कन्धे में बच्चे भी हैं
हुजूर बच्चे और बुढे मां बाप
हमारे लिये कभी बोझा नहीं होते ।


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