गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

पुल बनी थी माँ


                       
            पुल बनी थी माँ
                                          नरेंद्र पुण्डरीक

हम भाईयों मे बीच
पुल बनी थी माँ
जिसमें आये दिन
दौड़ती रहती थी बेधड़क
बिना किसी हरी लाल बत्ती के
हम लोगों की छुक छुक छक छक

पिता के बाद
हम भाईयों के बीच
पुल बनी थी माँ
अचानक नहीं टूटी
धीरे धीरे टूटती रही
हम देखते रहे और
मानते रहे कि
बुढ़ा रही है माँ

माँ के बाद बार कहने को
हम मान कर चलते रहे
उसके बूढ़े होने की आदत और
अपनी हर आवाज में धीरे टूटती रही माँ
हाथों हाथ रहती माँ
एक दिन हमारे कंधों पर या गई
धीरे-धीरे महसूस होने लगे हम
अपने वृषभ कंधों में माँ का भारी होना

जब तक जीवित रही माँ
हम बदलते रहे अपने कंधे
माँ आखिर माँ ही तो है
बार बार हमें कंधे बदलते देख
हमारे कंधों से उतर गई माँ
और माँ के कंधों से उतरते हुए ही
उतर गए हमारे कंधे  



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