फिर नदी बनी
फिर रेत सी पसर गई
फिर रेत सी पसर गई
और जब कोशिश भर किया
कि मुट्ठी में समेट लूँ रेत को
तब हाथ से फिसलकर
न जाने कब मिट्टी से मिल गई मां
कि मुट्ठी में समेट लूँ रेत को
तब हाथ से फिसलकर
न जाने कब मिट्टी से मिल गई मां
और मुझे बताया गया
नायाब मूर्तियों का सृजन हो रहा है
नायाब मूर्तियों का सृजन हो रहा है
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